रतन टाटा की यात्रा में उनके बचपन, दादी के प्रभाव, और कठिनाइयों का सामना करते हुए टाटा समूह की अध्यक्षता तक पहुँचने की कहानी है। उन्होंने भारत में पहली स्वदेशी कार बनाने का निर्णय लिया, जिससे भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग को नई दिशा मिली। उनकी सोच और मेहनत ने उन्हें सफल बनाया।