जीवन में असली सुख और सम्पत्ति धर्म से जुड़ी होती है। जो व्यक्ति धर्मशील है, उसके पास सुख और संपत्ति स्वतः आती है। इसके विपरीत, अधर्म में लगे लोगों के पास केवल धन होता है। असली संपत्ति वह है जो परमार्थ और सत्कर्म की प्रेरणा देती है, न कि केवल भौतिक धन।